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अगर किसी अस्पताल में इलाज के नाम पर होती है लूट तो यहां करें शिकायत..लग जाएगा अस्पताल पर ताला
इमरजेंसी में कोई भी हॉस्पिटल पेशेंट को इलाज देने से मना नहीं कर सकता। फिर चाहे हॉस्पिटल प्राइवेट ही क्यों न हो। प्रारंभिक इलाज के बाद पेशेंट अपने मर्जी के हॉस्पिटल में जा सकता है। इमरजेंसी केस में प्रारंभिक इलाज का पैसा पेशेंट से जबरन नहीं वसूला जा सकता।
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व वॉइस प्रेसीडेंट डॉ. भरत छपरवाल कहते हैं कि किसी भी पेशेंट को उसको दिए जा रहे ट्रीटमेंट पर डाउट है तो वह डॉक्टर से ट्रीटमेंट को लेकर पूरी जानकारी ले सकता है। सस्ते इलाज के बारे में जानने का है हक : यदि पेशेंट को ट्रीटमेंट महंगा पड़ रहा है, जिसे वो अफोर्ड नहीं कर सकता तो उसे अल्टरनेटिव ट्रीटमेंट के बारे में जानने का पूरा हक है। हॉस्पिटल में शुल्क अदा करते ही पेशेंट कंज्यूमर की श्रेणी में आ जाता है।
कंज्यूमर कोर्ट में कर सकते हैं अपील : इसके बाद यदि हॉस्पिटल में कोई गड़बड़ हो तो मेडिकल काउंसिल के साथ ही कंज्यूमर कोर्ट में भी अपील की जा सकती है। कंज्यूमर कोर्ट के नेशनल कमीशन में 1 करोड़ या इससे ज्यादा तक के कम्पनसेशन के लिए पेशेंट क्लैम कर सकता है। यदि कोर्ट क्लैम को सही पाता है तो हॉस्पिटल को इतनी राशि पेशेंट को देना पड़ेगी।
कहां कर सकते हैं शिकायत : किसी पेशेंट को ट्रीटमेंट, जांच या दवाईयों को लेकर कोई शिकायत है तो वह सबसे पहले संबंधित डॉक्टर और हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन से इसकी शिकायत कर सकता है। इसके अलावा हॉस्पिटल के शिकायत केंद्र में भी अपनी बात रखी जा सकती है। वहीं यदि ड्रग को लेकर कोई शिकायत है तो लोकल फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन में इसकी शिकायत की जा सकती है। यहां भी समस्या का समाधान न हो तो मेडिकल काउंसिल में शिकायत कर सकता है। काउंसिल पेशेंट को कम्पनसेशन या डॉक्टर को सजा तो नहीं दे सकती लेकिन संबंधित डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन जरूर रद्द कर सकती है। काउंसिल के रजिस्ट्रार को तय फॉर्मेट में शिकायत सौंपना होती है।
इसके अलावा कंज्यूमर कोर्ट में भी शिकायत की जा सकती है। इसमें सादे कागज में पूरी शिकायत के साथ ही कम्पनसेशन की मांग की जा सकती है। डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर कोर्ट 20 लाख रुपए तक का, स्टेट कंज्यूमर कोर्ट 1 करोड़ तक का और नेशनल कमिशन 1 करोड़ से ज्यादा तक के कम्पनसेशन का आदेश दे सकती हैं।