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इसे कहते हैं रियल गुडवर्क! गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए IAS स्वप्निल ने दान कर दी 2 महीने की सैलरी, बनाया शानदार स्कूल

May 5, 2019

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 सरकारी अधिकारी का नाम सुनते ही आम लोग थोड़ा परेशानी में आते हैं। सोचते हैं कौन पड़े इन खडूस टाइप के अधिकारियों के चककर में, ऐसा इसलिए कि कई IAS-IPS ऐसे होते हैं जो लोगों से दूरी बनाकर और एक अकड़ लेकर काम करते हैं लेकिन हर अधिकारी एक जैसा नहीं होता। हकीकत में न जाने कितने ऐसे अफसर हैं जो अपनी अच्छी ईमानदार सोच और अपने सराहनीय काम की बदौलत हम सबका दिल जीत रहे हैं।

आज हम आपको एक ऐसे अधिकारी के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने अपनी दो महीने की सैलरी गरीब बच्चों के नाम कर दी। हम बात कर रहे हैं IAS स्वप्निल टेंबे की। टेंबे 2015 बैच के IAS अधिकारी हैं और फिलहाल मेघालय में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वे दादेंगरे सिविल सब डिविजन में बतौर सब डिविजनल ऑफिसर (SDO) पदस्थ हैं।

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IAS की ट्रेनिंग के तहत स्वप्निल को मानव संसाधन विकास मंत्रालय में बतौर असिस्टेंट सेक्रेटरी काम करने का मौका मिला। केंद्रीय सचिवालय में काम करने के दौरान उन्हें शिक्षा व्यवस्था को काफी करीब से समझने का मौका मिला और उन्होंने इस क्षेत्र पर अपना खास ध्यान देने का फैसला किया। उनकी पोस्टिंग जहां हुई है वह मेघालय की गारो पहाड़ियों के बीच बसा यह इलाका शिक्षा के मामले में काफी पिछड़ा है। जब उन्हें यहां एसडीओ की जिम्मेदारी मिली तो उन्होंने पाया कि इलाके में काफी कम सरकारी स्कूल हैं।

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स्वप्निल ने स्कूलों की दशा और दिशा सुधारने का जिम्मा ले लिया। वे हर रोज सुबह अपने ऑफिस जाने से पहले स्कूलों का चक्कर लगाने लगे। उन्होंने देखा कि एक तो स्कूलों की संख्या काफी कम है और ऊपर से उनकी हालत कुछ खास अच्छी नहीं है। वे बताते हैं, ‘लोअर प्राइमरी स्कूलों में मुश्किल से 2-3 कमरे होते हैं और इतने ही शिक्षकों की बदौलत 30-40 बच्चों को पढ़ाया जाता है।’ स्वप्निल बताते हैं कि मेघालय के इस इलाके में तो शिक्षा की स्थिति फिर भी बेहतर है, वहीं उत्तर पूर्व के पहाड़ी इलाकों में जहां आबादी का घनत्व कम है वहां शिक्षा व्यवस्था की हालत और भी बदतर है।

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इसके बाद स्वप्निव ने सोंगादिंगरे गांव के लोअर प्राइमरी स्कूल को गोद ले लिया। इस स्कूल में लगभग 30 बच्चे हैं और सिर्फ 2 कमरे हैं। वे बताते हैं, ‘सोंगादिंगरे आंगनबाड़ी बिल्डिंग भी स्कूल के पास ही थी और उसमें लगभग 20 बच्चे पढ़ने के लिए आते थे। तो हमने सोचा कि क्यों न इसका भी पुनरुद्धार करें क्योंकि यह इमारत भी काफी पुरानी हो चुकी थी। इतना ही नहीं स्कूल में रखे फर्नीचर भी पुराने और खराब हालत में थे। मैंने सोचा कि इस स्कूल को गोद लेकर इसे मॉडल स्कूल में बदला जा सकता है। ऐसा करने पर और लोग भी प्रेरित होंगे।’

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इस काम के लिए स्वप्निल राज्य के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा को अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं। उन्हीं के रास्ते पर चलते हुए उन्होंने अपनी दो महीने की सैलरी स्कूल को बदलने के लिए दान कर दी। उनकी दो महीने की सैलरी लगभग 1.50 लाख रुपए होती है, इसके साथ ही उन्होंने क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म मिलाप के जरिए 2 लाख रुपये और इकट्ठा कर लिए।

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इसके लिए भारत समेत विदेशों से भी कई लोगों ने हरसंभव मदद की और सिर्फ 10 दिनों में 2 लाख रुपये इकट्ठा हो गए। इन पैसों की मदद से स्कूल की इमारत पूरी तरह से बदल गई है।

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पहले जहां बारिश में छतों से पानी टपकता था वहीं अब उसकी मरम्मत कर दी गई है। खिड़कियां भी लग गई हैं औरर दीवारों पर पेंट हो गया हैय़ फर्नीचर भी नए आ गए हैं।

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आधारभूत संरचना में विकास होने की वजह से स्कूल में आने वाले बच्चों का भी हौसला बढ़ा है।

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