मान लीजिये कि आपने किसी ऑनलाइन रिटेल शॉप जैसे की फ्लिप्कार्ट, अमेज़न, इत्यादि से कोई टीवी या फ्रिज आर्डर किया. वो भी एकदम महंगा वाला. चलिए मान लेते हैं कि लाख-डेढ़ लाख रुपये का सामन आर्डर कर दिया. फिर आप पालथी मार के बैठे हुए सामान का इन्तजार करते हैं. जब वो टीवी या फ्रिज आपको डिलीवर हो जाता है और आप उसका पैकेट खोलते हैं तो उसमें से 10 किलो पनीर निकलता है.
तो ऐसे में क्या आप मटर पनीर का प्लान बना के मटर लेने निकल जायेंगे या आग बबूला हो जायेंगे? जाहिर सी बात है आग बबूला ही होंगे, कस्टमर केयर का फोन भी घंघनायेंगे और साथ ही साथ भगवान् को दुहाई भी देंगे की आप ही क्यों?

तो ऐसे किसी भी सिचुएशन से बचने के लिए यह बहुत जरुरी है कि आप इस मामले को समझें की आखिरकार ये सामन वाली गलतियाँ होती क्यों हैं?
सबसे पहले किसी भी सामान का कस्टमर तक पहुंचाने का सिस्टम समझिये.
मामला यह है कि जब हम कोई चीज़ ऑनलाइन ऑर्डर करते हैं तो सबसे पहले कंपनी का सॉफ़्टवेअर यह पता लगाता है कि वह चीज(आर्डर की हुई) कहां रखी हुई है. यह सॉफ़्टवेअर फिर किसी कर्मचारी को बताता है कि वो चीज़ कहां रखी है.
जिसके बाद वो कर्मचारी वेयर-हाउस(जहाँ कंपनी का सारा सामान रखा हुआ रहता है) के बताये हुए शेल्फ़ तक पहुँचता है, पैकेट उठाता है, फिर हाथ में उठाए स्कैनर से स्कैन करता है. स्कैनर पता लगाता है कि वो सही पैकेट है या नहीं, सही नाम पता तो डाला गया है न. सही होने पर उस पर ग्राहक का नाम, पते की पर्ची चिपका देता है.

जिसके बाद इस सामान को डिलीवर कर दिया जाता है. अब ऐसे में सवाल है की जब इतनी जांच परख के साथ काम होता है तो फिर गलती क्यों हो जाती है?
ऐसे होता है मामला खराब.
बीबीसी से बात करते हुए ई-कॉमर्स और साइबर मामलों के जानकार विनीत कुमार बताते हैं कि अगर आपने किसी बड़ी और जानी मानी ऑनलाइन रिटेलर से कोई सामान खरीदा है तो सामान बदल जाने की गुंजाइश बहुत कम हो जाती हैं. लेकिन हममें से ज्यादातर लोग कौन सा ‘सेलर’ है, इस बात पर ध्यान नहीं देते. सेलर्स की रेटिंग इस तरह की धांधलियों के लिए ख़ासतौर पर ज़िम्मेदार होती है. इसके अलावा कई बार डिलीवरी ब्वॉय भी सही सामान निकालकर कुछ भी भर देते हैं.
तो भाई बचेंगे कैसे इस चीज से?
देखिये, कुछ चीजों का ध्यान रखेंगे तो इस गड़बड़ी से बड़ी आसानी से बचा जा सकता है. सबसे पहले तो जो भी डिलीवरी बॉय आपका सामान लेकर आता है, उसको दो मिनट रोकिये. उसके सामने ही सामान की अनबॉक्सिंग कीजिये माने की पैकेट से सामान को निकालिए. कोशिश यह भी रहे की आप सामान के अनबॉक्सिंग के वक़्त उसकी एक विडियो भी बना लें ताकि आपके पास कंपनी और दुनिया को दिखाने के लिए एक सबूत हो जाये.
इसके अलावा विनीत बाबू बताते हैं कि आपकी आधी समस्या का अंत तो तभी हो जाता है जब आप “अच्छे” ऑनलाइन रिटेलर से कुछ आर्डर करते हैं. धोखेधरी का खतरा उसी समय काफी हद तक कम हो जाता है. लेकिन इतनी दूर तक आप आयें हैं तो पेमेंट से जुडी जानकारी भी लेते जाएँ. हमें भी अच्छा लगेगा.
कैसे करें पेमेंट?
रुपैया से बड़ा क्या ही है इस दुनिया में? भले ही मार्किट में गिरता जा रहा हो लेकिन बेवजह कभी पॉकेट से गिर जाये तो साँसें अटक जाती हैं. इसलिए पेमेंट करते समय बहुत अधिक सावधान रहने की ज़रूरत है. सबसे पहले, पता करें कि जिस वेबसाइटसे आप सामान ख़रीद रहे हैं उसके सिस्टम में वेरीफ़ाइड बाई वीज़ा या मास्टरकार्ड सिक्योरकोड के ज़रिए पेमेंट कर सकते हैं या नहीं. इसके लिए हां करें. ये वेरिफ़िकेशन आपको धोखे से बचाता है.

इस बात पर भी ध्यान दें कि डिलीवरी के लिए समय कितना लगेगा. पेमेंट से जुड़ी जानकारी वेबसाइट पर दी गई होनी चाहिए.अगर इन सारी बातों से आप संतुष्ट हैं, तभी ख़रीदारी को लेकर आगे बढ़ें. हमेशा की तरह अपने क्रेडिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड का पासवर्ड या पिन कभी किसी से शेयर नहीं करें.
इतनी शिक्षा किस बात की?
ये सारी बातें इसलिए क्योंकि हाल फिलहाल में सोनाक्षी सिन्हा के साथ धोखा हो गया. उन्होंने अठारह हजार का हेडफोन आर्डर किया था. जब पैकेट खोला तो उसमें टोंटी निकली. खैर वो सोनाक्षी सिन्हा हैं और उन्होंने ये सदमा बर्दाश्त कर लिया. इसके साथ ही साथ उनके एक ट्वीट पर कंपनी ने उनका मामला भी शोर्टआउट कर दिया था. पर तुम तो कोई धन्ना सेठ हो नहीं इसलिए अगर तुम्हारा मामला अटक गया तो फिर तो तुम्हारी दुनिया ही बदल जायेगी न. खैर, हमारे मित्र जरुर हो इसलिए तुम्हारी सुरक्षा हेतु बता डाला.