यूटिलिटी
पोर्टफोलियो रिबैलेंसिंग से पहले करें पूरा सोच-विचार, इससे बढ़ती है रिस्क लेने की क्षमता

Dainik Bhaskar
Feb 28, 2020, 10:45 AM IST
यूटिलिटी डैस्क. म्यूचुअल फंड निवेश से जुड़ी अहम बातों को समझना जरूरी है। पोर्टफोलियो रिव्यू, रिबैलेंसिंग और रिवैंप ये तीन प्रमुख बातें हैं। पोर्टफोलियो रिव्यू एक नियमित प्रक्रिया है और इसे हर साल एक बार किया जाना चाहिए। वहीं, रिबैलेंसिंग का काम तीन-चार साल में एक बार किया जाना चाहिए। इसके तहत आप डेट/इक्विटी के संतुलन पर गौर करते हैं ताकि लक्ष्य हासिल किया जा सके। प्रकाश गगदानी, सीईओ, 5पैसा.कॉम बताते हैं कि पोर्टफोलियो रिवैंप एक तरह से रिबैलेंसिंग जैसा ही है लेकिन इसके तहत काफी बदलाव किया जाता है। यह आम तौर पर पूरे टर्म में एक से दो बार ही होना चाहिए। जहां तक पोर्टफोलियो रिबैलेंसिंग का सवाल है तो इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। मुमकिन है कि आपकी रिस्क लेने की क्षमता बढ़ी हो। साथ ही ब्याज दर और पी/ई वैल्यूएशन को भी ध्यान में रखा जाता है। मुमकिन है कि किसी म्यूचुअल फंड का एनएवी लगातार उम्मीद से कम परफॉर्म कर रहा तो आपके पास उसे बदलने के अलावा कोई चारा न हो।
बार-बार रिबैलेंसिंग से कम हो सकता है फायदा
बार-बार रिबैलेंसिग करने से मुमकिन है कि आपको संभावित फायदे से ज्यादा खर्च करना पड़ जाए। रिबैलेंसिंग करने पर एक्जिट लोड, ब्रोकरेज लागत और स्टैंप ड्यूटी, एसटीटी, सर्विस टैक्स के रूप में ठीक-ठाक रकम निकल सकती है। इसलिए सोच-विचार जरूरी है।