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वो राजपूत रानी..जिसने अकबर के भी पसीने छुड़ा दिए थे…इन्होंने अकेले ही अकबर को तीन बार हराया
मुगल सम्राट अकबर मध्यभारत में अपने पैर जमाना चाहते थे। उन्होंने रानी दुर्गावती के पास इसका प्रस्ताव भेजा, साथ ही ये चेतावनी भी रानी के पास भिजवाई की अगर ऐसा नहीं किया तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। रानी दुर्गावती ने उसकी एक बात नहीं मानी और युद्ध किया।
जिस दिन रानी दुर्गावती का जन्म हुआ था उस दिन दुर्गाष्टमी थी (5 अक्टूबर 1524)। इसी कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा (कालांजर) में हुआ था।1542 में उनका विवाह दलपत शाह से हुआ। दलपत शाह गोंड (गढ़मंडला) राजा संग्राम शाह के सबसे बड़े बेटे थे।विवाह के कुछ साल बाद ही दलपत शाह का निधन हो गया। उस समय उनके बेटे वीरनारायण छोटे थे, ऐसे में रानी दुर्गावती को राजगद्दी संभालनी पड़ी। वह एक गोंड राज्य की पहली रानी बनीं। अकबर चाहता था कि रानी मुगल साम्राज्य के अधीन अपना राज्य कर दें। अकबर ने रानी दुर्गावती पर दबाव डाला, लेकिन महारानी दुर्गावती ने जंग लड़ना पसंद किया।
मुगल बादशाह अकबर ने गोंड राज्य की महिला शासक को कमजोर समझ कर उन पर दबाव बनाया। अकबर ने 1563 में सरदार आसिफ खान को गोंड राज्य पर आक्रमण करने भेज दिया। रानी की सेना छोटी थी। रानी की युद्ध रचना से अकबर की सेना हैरान रह गई। उन्होंने अपनी सेना की कुछ टुकडिय़ों को जंगल में छिपा दिया। शेष को अपने साथ लेकर निकल पड़ी। एक पर्वत की तलहटी पर आसिफ खान और रानी दुर्गावती का सामना हुआ। मुगल सेना बड़ी और आधुनिक थी, उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे, रानी के सैनिक मरने लगे, परंतु इतने में जंगल में छिपी सेना ने अचानक धनुष बाण से आक्रमण कर, बाणों की वर्षा कर दी। इससे मुगल सेना के कई सैनिक मारे गए। अकबर की सेना का भारी क्षति हुई और वह हार गया। अकबर की सेना ने तीन बार आक्रमण किया और तीनों बार उसे हार का मुंह देखना पड़ा।
सन 1564 में आसिफ खान ने छल से सिंगार गढ़ को घेर लिया। परंतु रानी वहां से भागने में सफल हुईं। इसके बाद उसने रानी का पीछा किया। एक बार फिर से युद्ध शुरू हो गया, रानी वीरता से लड़ रही थीं। इतने में रानी के पुत्र वीर नारायण सिंह घायल हो गए। रानी के पास केवल 300 सैनिक ही बचे थे। रानी स्वयं घायल होने पर भी अकबर के सरदार आसिफ खान से युद्ध कर रही थीं। उसकी सेना भारी गोलाबारी कर रही थी। मुगल सेना से युद्ध करते-करते रानी को एक तीर कंधे में लगा। उस तीर को निकाल कर वह फिर युद्ध करने लगीं। इसके कुछ घंटे बाद एक तीर उनकी आंख में लग गया। सैनिकों ने उनसे युद्ध भूमि छोड़कर सुरक्षित स्थान पर चलने को कहा। रानी ने मना कर दिया और कहा युद्ध भूमि छोड़कर नहीं जाएंगी। उन्होंने कहा उन्हें युद्ध में विजय या मृत्यु में से एक चाहिए।
जब रानी असहाय हो गई तब उन्होंने एक सैनिक को पास बुलाकर कहा, अब तलवार घुमाना असंभव है। शरीर का एक अंग भी शत्रु के हाथ न लगे। रानी ने कहा यही उनकी अंतिम इच्छा है। इसलिए भाले से मुझे मार दो। सैनिक अपनी रानी को मारने की हिम्मत नहीं कर सका तो उन्होंने स्वयं ही अपनी कटार अपनी छाती में घुसा ली। यह तिथि 24 जून, 1564 बताई जाती है।