लाइफ स्टाइल
CM को गिरफ्तार करने की हिम्मत दिखा चुकी हैं ये IPS, उम्र से दोगुनी बार झेल चुकी हैं ट्रांसफर
कर्नाटक की तेजतर्रार आइपीएस अफसरों में शुमार हैं डी रूपा (IPS D Roopa)। फील्ड ही नहीं सोशल मीडिया पर भी सक्रियता के लिए जानी जातीं हैं। जरूरी सम-सामयिक मुद्दों पर ट्वीट और पोस्ट लिखतीं रहतीं हैं। इस वक्त कर्नाटक पुलिस में इंस्पेक्टर जनरल यानी आइजी हैं। फिलहाल सूबे में उनके हवाले होम गार्ड्स और सिविल डिफेंस की कमान है।
इसके पहले वह डीआइजी(जेल) के पद पर थीं। तब वह सुर्खियों में रहीं थीं, जब जयललिता की करीबी और भ्रष्टाचार में कर्नाटक की जेल में बंद तमिलनाडु की एआईएडीएमके नेता शशिकला को अंदर मिलने वाली वीआइपी सुविधाओं का भंडाफोड़ किया था। आज, यहां चर्चा दूसरी वजह से है। डी रूपा(D Roopa) ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक पोल कराया। इस पोल के जरिए उन्होंने पुलिस के बारे में आम जन की राय भांपने की कोशिश की। डी रूपा ने ट्वीट कर पूछा- आपमें से कितने लोग वास्तव में अब तक पुलिस के संपर्क में आए हैं और पुलिस के बारे में आपका ख्याल कैसा रहा? इसमें चार विकल्प दिए गए थे। सकारात्मक, नकारात्मक और संपर्क में कभी नहीं आए(नकारात्मक) और संपर्क में कभी नहीं( सकारात्मक)
डी रूपा के पोल पर 11544 लोगों ने जवाब दिए। खास बात रही कि आधे से ज्यादा यानी 51 प्रतिशत लोगों ने आईपीएस ने निगेटिव विकल्प पर वोट दिया। यानी पुलिस को लेकर उनका बुरा अनुभव रहा। इसी तरह महज 28 प्रतिशत ने पुलिस से अपने संपर्क को सकारात्मक माना वहीं 12 प्रतिशत ने बताया कि उन्होंने पुलिस से कभी संपर्क नहीं किया मगर नकारात्मक धारणा है, जबकि नौ प्रतिशत ने वोट कर बताया कि वे कभी संपर्क में नहीं आए मगर धारणा पॉजिटिव(सकारात्मक) है। पोल में भाग लेने के अलावा भी तमाम लोगों ने डी रुपा के इस ट्वीट पर जवाब दिए। बताया कि अब भी पुलिस को लेकर जनता में धारणा अच्छी नहीं है। हालांकि कुछ लोगों ने अपने अच्छे अनुभव भी सुनाए।
उमा भारती को जब गिरफ्तार करने निकलीं थीं :
डी रूपा ही वह आईपीएस हैं, जो 2004 में एक वारंट को तामील कराने के लिए कर्नाटक से उमा भारती को गिरफ्तार करने एमपी के लिए निकल पड़ीं थी, वो भी जब उमा भारती मुख्यमंत्री थीं। हालांकि डी रूपा के पहुंचते से पहले तक उमा भारती ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दियाथा।। तब डी रूपा कर्नाटक के धारवाड़ जिले की पुलिस अधीक्षक(एसपी) थीं।
दरअसल, जब 2003 के चुनाव में उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं तो उनके खिलाफ दस साल पुराने मामले में गैर जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ था। यह मामला कर्नाटक के हुबली से जुडा था। जहां 15 अगस्त 1994 को ईदगाह पर तिरंगा फहराने के मामले में उनके खिलाफ वारंट जारी हुआ था। आरोप था कि उनकी इस पहल से सांप्रदायिक सौहार्द खतरे में पड़ा। वारंट जारी होने पर उमा भारती को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। बाद में कोर्ट में उमा भारती को पेश होना पड़ा।