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समय रहते चेत गई होती मोदी सरकार तो देश में नहीं बिगड़ते कोरोना के हालात: रघुराम राजन

भारत में पिछले कुछ दिनों से रोजाना कोरोना के 3.5 लाख से अधिक नए मामले आ रहे हैं। इसके संक्रमण को थामने के लिए सरकार पर सख्त लॉकडाउन लगाने का दबाव है लेकिन सरकार ने अब तक इससे इनकार किया है।
हाइलाइट्स:
- कोरोना की बेकाबू स्थिति के लिए लीडरशिप और दूरदर्शिता की कमी जिम्मेदार
- पहली लहर के बाद भारत में आत्ममुग्धता की स्थिति पैदा हो गई थी
- भारत को लगा कि बुरा दौर बीत गया और अब सबकुछ खोलने का समय आ गया है
- सरकार ने अपने लोगों के लिए पर्याप्त वैक्सीन बनाने पर ध्यान नहीं दिया
नई दिल्ली आरबीआई (RBI) के पूर्व गवर्नर और मोदी सरकार की नीतियों के आलोचक रहे रघुराम राजन (Raghuram Rajan) ने भारत में कोरोना की बेकाबू स्थिति के लिए लीडरशिप और दूरदर्शिता को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने साथ ही कहा कि पिछले साल कोरोना की पहली लहर के बाद देश में पैदा हुई
आत्ममुग्धता का भी भारत को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। भारत में पिछले कुछ दिनों से रोजाना कोरोना के 3.5 लाख से अधिक नए मामले आ रहे हैं। इसके संक्रमण को थामने के लिए सरकार पर सख्त लॉकडाउन लगाने का दबाव है लेकिन सरकार ने अब तक इससे इनकार किया है।
इंटरनैशनल मॉनीटरी फंड (IMF) के चीफ इकनॉमिस्ट रह चुके राजन ने Kathleen Hays के साथ Bloomberg Television इंटरव्यू में कहा कि अगर आप सावधान रहते तो आपका समझना चाहिए था कि अभी इसका खतरा खत्म नहीं हुआ है। दुनिया में दूसरी जगह खासकर ब्राजील में जो हो रहा है,
उससे आपको समझ जाना चाहिए था कि वायरस वापस आ रहा है और पहले से ज्यादा खतरनाक हो रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले साल कोरोना के मामलों में कमी के बाद भारत को लगा कि वायरस का बुरा दौर बीत चुका है और अब सबकुछ खोलने का समय आ गय़ा है। यही आत्ममुग्धता आज भारत को भारी पड़ रही है।
वैक्सीन पर नहीं दिया ध्यान
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में फाइनेंस के प्रोफेसर राजन ने कहा कि कोरोना की पहली लहर से निपटने में भारत की सफलता का नतीजा यह रहा कि उसने अपने लोगों के लिए पर्याप्त वैक्सीन बनाने पर ध्यान नहीं दिया। शायद भारत को लगा होगा कि अभी उसके पास समय है। उसे लगा कि हम वायरस से निपट चुके हैं इसलिए वैक्सीनेशन में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अब जाकर सरकार को होश आया है और वह इमरजेंसी मोड में काम कर रही है।
राजन को यूपीए सरकार ने 2013 में आरबीआई का गवर्नर बनाया था। लेकिन वह मोदी सरकार की नीतियों के आलोचक रहे। आरबीआई डिविडेंड (RBI Dividends) और इंटरेस्ट रेट (interest rates) के मुद्दे पर उनकी मोदी सरकार से नहीं बनी। भाजपा ने उन पर ब्याज दरें बहुत ज्यादा रखने का आरोप लगाया।